संतान का सुख हर कोई लेना चाहता है। कभी-कभी कुछ कारणों से व लापरवाहियों के चलते छोटी सी समस्यांए बडा रूप धारण कर लेती हैं। जैसे कि थायराॅयड होने पर सामान्यतः दिमाग में दो ही बातें आती है कि इस बीमारी से ग्रस्त आदमी या मोटा होता है या पतला, लेकिन थायराइड का संबंध इनफर्टिलिटी से भी होता है। इस बिमारी से ग्रसित होने की प्रवृत्ति महिलाओं में पुरूषों से चार गुना अधिक होती है। चिकित्सकों का मानना है, कि इस बीमारी को नजरअंदाज करना सही नहीं है। समय रहते इसके इलाज का इंतजाम होना चाहिए, हालांकि आज की जीवन शैली में थाइराइड की बीमारी काॅमन है।
ऐसा लगता है कि खत्म हुई दुनिया:- 29 वर्षीय पायल मेहरा एक काम काजी महिला है। इस छोटी सी उम्र में जब उन्हें पता चला कि वह गर्भधारण नहीं कर सकती, तो उन्हें लगा कि उनकी दुनिया खत्म हो गई है। उन्हें थायरायड की शिकायत थी, लेकिन इसे उन्होनें त्ववजो नही दी। एक साल बाद उन्होनें जब टीसीएच ब्लड टेस्ट कराया, तो वह हाइपोथायराॅयडिज्म की बीमारी से ग्रस्त थी, इससे वह गर्भधारण नहीं कर पा रही थी। मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर की आईवीएफ विशेषज्ञ डा शोभा गुप्ता बताती है कि पायल जैसे उनके पास कई मरीज आते है जो बाद में लापरहवाही के वजह से पछताते है। वह कहती है कि 80 फीसदी स्टैडर्ड थायराॅयड ब्लड टेस्ट भी लो ओवेरियन टिश्यू का स्तर बताने में सफल नहीं होते है। ऐसे में महिलाओं और युवतियों को अनुभवी और योग्य फिलिशियन के पास जाना चाहिए, जिसे इस बात की जानकारी हो कि स्टैडर्ड टेस्ट भी अक्सर लो ओवेरियन थयराॅयड के स्तर को नहीं जांच पाते।
क्या है हाइपोथयराॅयडिज्म - थायराॅयड हाॅर्मोन के अंडर एक्टिव होने से पर्याप्त मात्रा में महत्वपूर्ण हाॅर्मोन निकलते। महिलाओं के लिए ये स्थिति हाइपोथायराॅयडिज्म और इनफर्टिलिटी के बीच का लिंक है। इससे ओवल्यूशन प्रकिया में बाधा आती है।
इन लक्षणों के दिखने पर हो जाएं सतर्क - हाइपोथयराॅयडिज्म के कई प्रकार होते है। कुछ मरीजों में ऐसा भी होता है कि इसके लक्षण ही समाने नहीं आते है। वहीं कुछ मरीजों में कुछ सामान्य लक्षण दिखाई पड़ते है। विशेषतः लक्षण मरीज में हार्मोन की कमी के ध्सतर पर विकसित होते है। शुरुआती दौर में लक्षण तीव्र नहीं होते, लेकिन धीरे धीरे बढ़ते जाते है। और खतरनाक स्तर तक पहुंच जाते है। सामान्य लक्षणों में वजन बढ़ना, थकान, कब्ज, मांसपेशियां और जोंडों में दर्द ठंडे मौसम को सहन न कर पाना मासिक धर्म का अनियमित होना, नींद न आना, सुस्ती आना, त्वचा का शुष्क हो जाना, बालों का पतला हो जाना, खुरदुरा होना शामिल होना।
देर हो सकती है घातक
लक्षण दिखाई देने पर तुरंत थाइराइड स्टिम्यूलेटिंग हाॅर्मो टेस्ट, चेस्ट एक्सरे, टी-4 और थायरोकिसन टेस्ट कराना चाहिए। चिकित्सक मरीज की आयु, थायराॅयड ग्रंथि के लक्षण देखकर इसका उपचार करते है। इसके लिए थायराॅयड रिप्लेसमेंट टेस्ट प्रभावकारी है, इसमें इस हाॅर्मोन के सामान्य होने में एक दो महीने का समय लगता है। इसमें ताउम्र दवाइयां और प्रत्येक छह महीने में थायराॅयड चेक कराना जरुरी है।
मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर की आईवीएफ विशेषज्ञ डा शोभा गुप्ता कहती हैं कि विश्व पर इनफर्टिलिटी मेडिकल, सोशल और साइकोलाॅजिकल भार स्वरुप है। 18 से 20 फीसद दंपती रिप्रोडेक्टिव उम्र में भी इनफर्टिलिटि के शिकार होते है। थायराॅयड हार्मोन सेल्युलर फक्शन को नियमित करता है। इसका अनियमित होना फर्टिलिटी को प्रभवित करता है। थायराॅयड का पता चलना और अनुउपाचारित रहना इनफर्टिलिटी को और गर्भपात को निमंत्रण देता है। भारतीय थायराॅइड सोसायटी के मुताबिक प्रीमेंस्ट्रचुएल सिड्रोम ; पीएमएस द्ध वाली 70 फीसद महिलाओं में थायराॅइड का स्तर कम होता है। इससे ओवरी से होने वाले प्रोजेस्टरोन का स्त्राव कम होता है। इंडियन थाॅयराइड सोसाईटी के अनुसार भारत की 25ण्6 फीसद जनसंख्या थायराॅयड के सही से काम न करने की समस्या से ग्रस्त है।
वजन कम होना ।
तनाव से बचें व पूरी नींद लें।
नियमित व्यायाम करें।
इसके प्रारंभिक लक्षणों को अनदेखा न करें।